Sunday, December 10, 2017


प्रबुद्ध स्त्री

कल एक प्रबुद्ध स्त्री मिली I
उसका पति बहुत अधिक प्रबुद्ध था I
वह दुनिया को अपने पति के नज़रिए से देखती थी I


मुक्त स्त्री

कल एक मुक्त स्त्री मिली I
अपनी सभी व्यक्तिगत-सामाजिक जिम्मेदारियों-जवाबदेहियों से,सभी सामाजिक सरोकारों-प्रतिबद्धताओं से, सभी नैतिक उसूलों और वर्जनाओं से मुक्त I
और विचारों से भी पूरी तरह मुक्त I


गृहस्वामिनी स्त्री
वह दिखावे भर को नहीं, सचमुच की गृहस्वामिनी थी I
बाहर सड़कों-चौराहों पर, दूकानों में, बसों-ट्रेनों में, दफ़्तर में -- सभी जगह उसके दुश्मनों का साम्राज्य फैला था I
सुरक्षित तो उतनी नहीं थी, फिर भी अपने दुर्ग में वह अपने आपको काफी सुरक्षित महसूस करती थी I
शत्रु दल का एक अकेला व्यक्ति उसके दुर्ग में आ गया, भूलवश या किसी प्रलोभनवश या किसी विवशतावश I
फिर उसने उस शख्स से जमकर बदला लिया I रगड़ा, पछीटा, धोया, निचोड़ा, फटकारा और अलगनी पर पसार दिया I
अब वह अपने को इतना विजयी महसूस करती थी कि शत्रु की छवि में ढल गयी थी I


सरल स्त्री

उसने जीवन की जटिलताओं पर कभी ज्यादा सर नहीं खपाया I हर स्थिति को स्वीकार किया और हर बात पर नासमझी भरी भोली हँसी हँसती रही I
दरअसल, सरल हँसी उसका मुखौटा थी, उसका रक्षा कवच थी और शत्रु पर घात लगाने और हमला करने के लिए खोदी गयी खंदक थी I


प्रशासक स्त्री

रोज़ाना दफ़्तर में सैकड़ों मर्दों पर शासन करने के बाद जब वह घर लौटती थी तो पति से और अपनी बिल्ली से भरपूर प्यार करती थी I
फंतासी वाले रोमैंटिक मूड में वह पति से कहती थी,"तुम मुझे कुतिया की तरह पीटो और पालतू बनाओ I"
दफ़्तर में मर्दों को फटकारने और हुक्म देने में उसे यौनिक आनंदातिरेक जैसा कुछ महसूस होता था I वह यह भी जानती थी कि वे तमाम मर्द उसके बारे में कैसी कल्पनाएँ करते हैं और पीठ पीछे क्या बातें करते हैं!
वह अपने जीवन से संतुष्ट थी I अपनी उपलब्धियों पर गर्वित थी I
स्त्री दासता या स्त्री मुक्ति जैसे सवालों पर उसने कभी सोचा नहीं I
समाज के बारे में सोचने के बारे में वह सोच नहीं सकती थी I


आत्मा की गुप्तचरी करने वाली स्त्री

प्यार के अन्तरंग क्षणों में भी वह आत्मा की गुप्तचरी करती थी I
उसे इस क़दर इसका नशा-सा हो गया था कि वह प्यार, साहचर्य आदि के अन्तरंग अनुभव और सुख को भूल चुकी थी I
वह प्रतिशोध लेना चाहती थी और शिकार खुद हो रही थी I

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