Sunday, December 10, 2017


ज़िन्दगी हमारे सामने जो सवाल उपस्थित करती है, वे ठोस भौतिक यथार्थ से उपजे होते हैं I इन्हीं सवालों का हल ढूँढ़ने के लिए हम दार्शनिक अमूर्तन में जाते हैं I

दार्शनिक अमूर्तन हमें 'इंट्यूशन' से आगे एक 'हाइपोथीसिस' तक और समाधान की आम दिशा तक ले जाते हैं I फिर उस दिशा में हमें आगे बढ़ना होता है, ज़िन्दगी के ठोस यथार्थ की ज़मीन पर और बोध से निर्मित अपनी धारणा का सत्यापन और परिशोधन करना होता है I

दार्शनिक अमूर्तन निमित्त है, लक्ष्य नहीं -- साधन है, साध्य नहीं I जीवन का लक्ष्य अंततोगत्वा जीवन को बेहतर और सुन्दर बनाना ही हो सकता है I और यह काम कोई महानायक नहीं बल्कि जन समुदाय की सामूहिक मेधा करती है Iजो जीवन की बुनियादी शर्तों का निर्माण करते हैं, वही जीवन के भौतिक और आत्मिक सौंदर्य को निखारने की सृजनात्मक क्षमता रखते हैं I नायक और नेता, जो इसी समाज के बेटे और उन्नत तत्व होते हैं, वे उपरोक्त ऐतिहासिक-सामाजिक उद्यम में नेतृत्व देने का काम करते हैं I

No comments:

Post a Comment